🔗 TOI, The Wire, The Indian Express ने नागपुर हिंसा में मुस्लिम भीड़ के हमले छिपाए, हिंदुओं को ठहराया दोषी!
लेकिन सच क्या है…?
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हिंसा की शुरुआत तब हुई जब मुस्लिम भीड़ ने हिंदू समूहों पर हमला किया।
नागपुर में हाल ही में हुई हिंसा को लेकर टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI), द वायर और द इंडियन एक्सप्रेस जैसे प्रकाशनों ने अपनी रिपोर्टिंग में साफ तौर पर एकतरफा रवैया अपनाया।
इनका मकसद सच को जनता से छिपाना और केवल अपनी वामपंथी विचारधारा को बढ़ावा देना रहा। ये प्रकाशन हमेशा से हिन्दू समुदाय को निशाना बनाते आए हैं और नागपुर की घटना इसका ताजा उदाहरण है।
आइए, इनके पक्षपात को उजागर करें और देखें कि कैसे इन्होंने सच को दबाया।
TOI की चालाकी : हिंदुओं को ठहराया दोषी, मुस्लिम भीड़ को छिपाया।
TOI ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि नागपुर के महाल क्षेत्र में हिंसा तब भड़की जब औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग को लेकर प्रदर्शन बेकाबू हो गया। शब्दों का ऐसा चयन किया गया कि सारा दोष हिंदू प्रदर्शनकारियों पर डाल दिया जाए।
लेकिन सच क्या है…?
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हिंसा की शुरुआत तब हुई जब मुस्लिम भीड़ ने हिंदू समूहों पर हमला किया।
OpIndia को एक गवाह ने बताया कि 500-600 नकाबपोश लोगों ने “अल्लाह-हू-अकबर” जैसे नारे लगाते हुए पत्थरबाजी की और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया।
TOI ने इस हमले का जिक्र तक नहीं किया। उल्टा, हिंदुओं को हिंसक और पुलिस पर हमला करने वाला बताया। यह साफ दिखाता है कि TOI सच को तोड़-मरोड़कर अपने Narrative को आगे बढ़ाना चाहता था।
द वायर का ढोंग : हिन्दू संगठनों पर इल्जाम, असल वजह गायब।
द वायर ने भी इस घटना को अपने तरीके से पेश किया। इसने Vishwa Hindu Parishad (VHP) और Bajrang Dal जैसे संगठनों को हिंसा का जिम्मेदार ठहराया, लेकिन यह नहीं बताया कि हिंसा की जड़ में मुस्लिम भीड़ का सुनियोजित हमला था।
भाजपा विधायक प्रवीण दटके ने कहा कि भीड़ ने हिंदू दुकानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया, जबकि मुस्लिम दुकानों को छोड़ दिया गया।
द वायर ने इस पक्ष को पूरी तरह नजरअंदाज किया। उसका फोकस सिर्फ हिंदू संगठनों को बदनाम करने पर था। यह इनकी पुरानी रणनीति है— हिंदुओं को हमेशा आक्रामक दिखाओ और बाकी पक्ष को पीड़ित।
इंडियन एक्सप्रेस की चुप्पी : सुनियोजित हिंसा पर पर्दा।
“इंडियन एक्सप्रेस” ने भी कमाल कर दिखाया। इसने हिंसा को “प्रदर्शन के बाद भड़की अशांति” करार दिया, लेकिन यह नहीं बताया कि प्रत्यक्षदर्शी चंद्रकांत कावड़े ने ANI को क्या कहा — “कि 200 उपद्रवियों ने रामनवमी शोभा यात्रा का सामान जलाया और उनकी बाइक तक को आग के हवाले कर दिया।”
वंश कावले ने PTI को बताया कि भीड़ में बच्चे तक पेट्रोल बम लेकर आए थे। क्या इंडियन एक्सप्रेस को यह जानकारी नहीं थी जरूर थी, लेकिन उसने इसे छापना जरूरी नहीं समझा।
क्यों…? क्योंकि यह उनके वामपंथी एजेंडे के खिलाफ जाता है, जिसमें हिंदुओं को हमेशा गलत ठहराना जरूरी है।
सच क्या है…?
17 मार्च को संभाजी नगर में औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग को लेकर हिंदू समूह शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे। इसी दौरान कुरान जलाने की अफवाह फैली, जिसके बाद मुस्लिम भीड़ ने हिंसा शुरू की। पत्थरबाजी, आगजनी और पुलिस पर हमले हुए। 15 पुलिसकर्मी और 5 नागरिक घायल हुए।
यह हिंसा महाल से कोतवाली तक फैली। लेकिन इन प्रकाशनों ने इसे हिंदुओं की गलती बता दिया। यह साफ है कि ये सच को दबाकर जनता को गुमराह करना चाहते हैं। इनका मकसद केवल और केवल हिंदुओं को बदनाम करना है।
ये प्रकाशन बार-बार एक ही पैटर्न अपनाते हैं — “हिंदुओं को हिंसक दिखाओ, बाकी पक्ष को पीड़ित।” नागपुर की घटना में भी इन्होंने ऐसा ही किया।
इनके पास प्रत्यक्षदर्शियों के बयान, पुलिस की जानकारी और स्थानीय नेताओं के दावे थे, फिर भी इन्होंने आधा सच छापा। यह न सिर्फ पत्रकारिता के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाता है, बल्कि समाज में नफरत फैलाने का काम भी करता है।
निष्कर्ष -
TOI, द वायर और इंडियन एक्सप्रेस जैसे प्रकाशन सच को छिपाकर अपनी वामपंथी विचारधारा को थोपना चाहते हैं। नागपुर हिंसा में इन्होंने हिंदुओं को दोषी ठहराया, जबकि असल में मुस्लिम भीड़ ने सुनियोजित हमला किया।
इनकी एकतरफा रिपोर्टिंग जनता को सच से दूर रखती है। जरूरत है इनके खिलाफ आवाज उठाने की, ताकि सच सामने आए और इनका पर्दाफाश हो।
अंत में मैं बस इतना ही कहूँगा कि नागपुर हिंसा को अगर देखें तो शासन प्रशासन और पुलिस के दम पर कोई कौम 5-25 साल तो अस्तित्व में रह सकती है परंतु सदियों तक अस्तित्व में रहना असंभव है।
हिन्दू जितना संघर्ष से बचेगा, उतना अधिक संघर्ष हिस्से में आएगा। आज अगर 80% होने के बावजूद हिंदू शासन-प्रशासन के दम पर अपने जान माल की सुरक्षा पा रहा है तो सोचिए अगर स्थिति 60-40 की भी हुई तब आपकी स्थिति क्या होगी…?
तब तो शासन प्रशासन में भी आप निर्णायक नहीं रह पाओगे। ऐसी स्थिति में आप क्या करोगे। संघर्ष अंत में भी करना पड़ेगा! लेकिन तब तक आप, निर्णायक अवस्था में नहीं रह पाओगे।
इसलिए जब तक निर्णायक अवस्था में हो, सेफ जोन छोड़कर संघर्ष की आदत डाल लो। यह संघर्ष की आदत ही आपको अस्तित्व में रख सकती है। वरना शासन प्रशासन के दम पर कोई कौम कुछ वर्ष तो अस्तित्व में रह सकती है लेकिन सदियों तक अस्तित्व में नहीं रह पाएगी।
20% लोग भारत में 80% हिंदुओं को चाहे जब निकालकर मार सकते हैं। चाहे जब उनके घर, मकान, दुकानों में आग लगा सकते हैं, चाहे जब उनकी बहन-बेटियों को उठा सकते हैं। और 80% हिंदूओं की कोई तैयारी नहीं। हिन्दू केवल शासन प्रशासन के दम पर ही अपने वजूद को बचाने में लगा है।
हिन्दू, संघर्ष की मानसिकता को छोड़ चुका है अपने आपको और अपने परिवार को सेफ जोन में रखना चाहता है। संघर्ष से बचने की यह वृत्ति, भविष्य में आपके हिस्से में बहुत ज्यादा संघर्ष लेकर आएगी। इसलिए सदियों तक अस्तित्व में रहना है, तो संघर्ष की आदत डालनी पड़ेगी। और संघर्ष का दूसरा कोई विकल्प नहीं होता।

