माफ़ कीजिये, अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए मुझे मजबूरी में यह लिखना पड़ रहा है।
हमारे सभी त्यौहार भारतीय वर्ष के हिसाब से मनाये जाते हैं। और तो और मरने के बाद शव की भी हिन्दू विधि विधान से ही अंतेष्टि की जाती है। तथा तर्पण एवं पिंडदान भी हिन्दू विधि से ही होता है - या नही…?
भगत सिंह, बिस्मिल, खुदीराम, मंगल पांडेय के गले को फांसी की रस्सी से घोंट कर मार डालने वालों,
अकेले घिरे चंद्रशेखर आजाद के ऊपर हजारों गोलियां उसके मरने तक बरसाने वालों,
जलियांवाला बाग़ में हजारों निहत्थे लोगों को गोलियों भूनने वालों,
भारत माता को 200 साल तक दासी बना कर नोचने और लूटने वालों,
अखंड राष्ट्र के 3 टुकड़े करने वालों,भाग रही 19 साल की महारानी लक्ष्मीबाई को दौड़ाकर मार डालने वालों,
उड़ीसा के स्वामी लक्ष्मणनन्द के शरीर के टुकड़े टुकडे करने वालों,
आसाम, नागालैंड में हिंदू आदिवासियों का नरसंहार करने वालों,
भारत-पाकिस्तान युद्ध में हर बार पाकिस्तान का साथ देने वालों,
वैदिक भारत में
ब्लू फ़िल्म, समलैंगिक विवाह, हिप्पी, किस ऑफ लव संस्कृति चलाने वालों के "नव वर्ष" मानने वालों क्रूर, शापित, अश्लील आदेश देने वाले "ईसाईयत" के नववर्ष की शुभकामनायें सिर्फ आप को ही मुबारक।
आज के समय में "न्यू ईयर" बधाई संदेश देने वाला हिंदू वैसे ही अभागा और तुच्छ है। जो अपने शरीर से अपने पूर्वजों के "पवित्र रक्त" फेंक कर अपनी नसों में "लार्ड़ क्लाइव" की गंदगी भर रहा हो।
मंगल पाण्डेय, चन्द्रशेखर आजाद, महारानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, खुदीराम बोस, लाला लाजपत राय, पंडित राम प्रसाद, राजगुरु, हेमू कालानी और हमारे करीब 8 लाख अमर बलिदानी! जो इन "ईसाईयों" को भारत से बाहर भगाने और देश को आजाद करवाने में इन्ही अंग्रेजों के हाथों मारे गये थे। जिनका ये नया "नव वर्ष" है।
आज उन अमर बलिदानियों की आत्मा हम पर शर्मिंदा हैं कि मैकाले की नाजायज औलादें आज के भारत में भी जिन्दा हैं।
मैं भी हमेशा सोचता हूँ ऐसे लोगों के लिए हमारे अमर बलिदानियों ने अपना जीवन और अपना घर संसार क्यों बर्बाद कर लिया। आज उन सभी बलिदानी लोगों के परिवार गरीबी और गुमनामी में जी रहे हैं, जबकि मुझे तो इस देश के ऐसे लोगों के ऊपर तो थूकना भी ठीक नहीं लगता। ऐसे लोगों के लिये जान देना तो बहुत दूर की बात है।
नव वर्ष का संदेश सिर्फ एक संदेश ही नहीं बल्कि हमारे देश की आजादी के लिये लड़ने और मरने वाले क्रांतिकारी शहीदों का अपमान भी है। ईसाई नववर्ष का "बधाई संदेश"
विचार करें…!!
जब हिन्दुओं के बच्चो को ईसाई स्कूलों में तिलक लगाने और राखी बाँधने पर पाबंदी है तो मुर्ख हिन्दू "क्रिसमस" मनाने पर क्यों उतावले हो जाते हैं…?
हाँ किसी को मौज मस्ती और शराब पार्टी करनी हो तो करे, लेकिन नववर्ष के नाम पर पार्टी करना उचित नहीं।
जिस किसी की अपने सनातन धर्म में कमजोर आस्था हो, ऐसा कोई मुर्ख मुझे नये साल का बधाई संदेश नहीं भेजे। मैं सनातनी हूँ और ये मेरा नया साल नहीं है। ये तो ईसाईयों का नया साल है, जिससे मुझे कोई लेना देना नहीं है।
हमारा नव वर्ष 'चैत्र शुक्ल प्रतिपदा' को है और हम सनातनी वही मानते हैं।

