ईसाईयों के नये साल और क्रिसमस जैसे आयोजन आते ही कुछ "अति विकसित लोग" बरसाती मेंढक की तरह फुदक-फुदक कर आपस में एक दूसरे को उसकी शुभकामनाएँ देते नजर आ जाते हैं। मानो जैसे उनके दादा परदादाओं द्वारा खाए गए अंग्रेजों के नमक का वे हक़ अदा कर रहे हों।
लेकिन ऐसा करते समय वो एक महत्वपूर्ण बात भूल जाते हैं कि पड़ोसी के बाप को अपना बाप बता कर खुशियां मनाने से उनकी प्रबुद्धता नहीं बल्कि, उनकी मानसिक दिवालियापन ही झलकती है।
खैर ईसाईयों के नए साल के आयोजन को मनाने से पहले क्या आपने कभी सोचा है कि ये अंग्रेजों का नया साल हमेशा रात्रि के अँधेरे में छुप कर ही क्यों आता है जबकि, दिन की शुरुआत तो (ब्रह्म मुहूर्त, जब पक्षी जागते हैं) सुबह करीब 5:30 से मानी जाती है।
ऐसा इसीलिए है क्योंकि इस पृथ्वी के गोल होने के कारण सारी दुनिया में समयों का तालमेल रखने के लिए एक GMT अर्थात "ग्रीनविच मीन टाइम" होता है जो इंग्लैंड का समय होता है।
और पृथ्वी पर अपने मौजूदा जगह के हिसाब से वो "ग्रीनविच मीन टाइम" हमारे भारत के समय से 5:30 घंटे पीछे रहता है। कहने का मतलब है कि जब हमारे यहाँ सुबह के 5:30 बजे होते हैं तो वहां 12:00 होते हैं रात्रि के!
इसीलिए, जब हमारे यहाँ सुबह के 5.30 बजते हैं तो उस समय इंग्लैण्ड में अर्धरात्रि ही रहती है।इसीलिए वो हमारे अनुसार ही दिन परिवर्तन मानते थे। परन्तु मानसिक दिवालियापन और गुलाम मानसिकता का ये दशा है कि जो अंग्रेज हमारे समय के हिसाब से अपनी सुबह मानते थे। कालांतर में, हिंदुस्तानी उन्ही मूर्ख अंग्रेजों के हिसाब से अर्धरात्रि को ही अपनी सुबह मनाकर खुश होने लगे।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब बैंकों और अन्य सरकारी दस्तावेजों में 1 अप्रैल को नया साल होता है तो फिर ये 1 जनवरी को क्या, कैसा और किसका नया साल है…?
इसका कारण यह है कि अंग्रेज ईसाई धर्म को मानते हैं और, ईसाई धर्म के प्रवर्तक "ईसा मसीह" का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था। जिसे वे लोग बड़ा दिन या क्रिसमस के तौर पर मानते हैं।
और नियमानुसार ईसा मसीह के जन्म के छठवें दिन यानि 1 जनवरी को उनका खतना हुआ था। जिसे ईसाई धर्म को मानने वाले लोग एक नए युग की शुरुआत मानते हैं और 31 दिसंबर एवं 1 जनवरी को ईसा मसीह का खतना दिवस मानते हुए 'दारु पीकर एवं नाच गा कर पार्टी मनाते हैं।'
तो आप स्वयं ही विचार करें कि एक भारतीय और हिन्दू होने के नाते क्या हम लोगों को किसी का खतना दिवस मनाना चाहिए। खासकर उनका जो हम हिंदुओं, हमारी मान्यताओं और हमारे देवी-देवताओं का हमेशा अपमान करते हों…?
खैर अंत में इतना ही कहूंगा कि मैंने बचपन से बच्चे की छठ्ठी में हिजड़ों को नाचते-गाते देखा है परन्तु आधुनिकता के नाम पर सर्वश्रेष्ठ हिन्दू भी एक बच्चे के खतना होने पर नाचें गायें यह देखना काफी आश्चर्यजनक और दुःखद है।
जहाँ तक मेरी बात है तो मैं एक सनातनी हूँ और, मेरी रगों में एक सनातनी का शुद्ध खून दौड़ रहा है। इसीलिए किसी के खतना दिवस पर मैं हिजड़ों की तरह नाच गा कर खुशियां नहीं मनाता।
जो कोई भी सज्जन अथवा दुर्जन हिन्दू होने के बावजूद भी ऐसा करते हैं मुझे उनसे बेहद हमदर्दी है और उन्हें एक सच्ची सलाह है कि कृपया जल्द से जल्द DNA की जांच करवा लें कि कहीं उनका DNA किसी अंग्रेज से तो…

