हजारों-लाखों मन्दिर तोड़े गए, और उनपर मस्जिदें बनी।
पर हिन्दू बस तीन जगहें अयोध्या-काशी-मथुरा मांग रहा है।
ये तीन सबसे बड़े भगवानों की स्थली है।
ये तीन मिल जाये, बस इतने से हिन्दू संतुष्ट हो जाएगा।
उपरोक्त दो बयान हिन्दू हितों के दो बड़े विचारकों के हैं।
इनके अतिरिक्त भी कई गणमान्य हिंदुओं के विचार हैं कि बीती बातों को कुरेदने का कोई लाभ नहीं।
अयोध्या मिल ही गया है, बस काशी-मथुरा मिल जाये तो बात खत्म की जाए। बल्कि सबसे बड़े हिन्दू संगठन ने तो यह भी कह दिया था कि वे काशी के लिए कोई आंदोलन नहीं करने वाले।
आपको यहूदियों के प्रति अत्याचारों की याद होगी।
आज यहूदियों का जो झगड़ा है, वह मुसलमानों से है।
पर उनपर जो सितम द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ढाए गए थे, वह ईसाइयों ने, जर्मन ईसाइयों ने ढाए थे।
बाद में संसार को सब कुछ, नङ्गी आँखों से दिखाया गया। एक भी चीज छिपाई नहीं गई थी।
गैस चैंबर में उन्हें डालने से पहले जो उनके सिर के बाल छीले गए थे, उन बालों से भरे कमरे।
हजारों-हजार यहूदी बच्चों के कंकाल। हड्डियों से चिपके मांस वाले मृतप्राय मनुष्य।
बिखरी हड्डियों के साथ मानव शरीरों की राख।
यह अत्याचार दिखाकर क्या लाभ हुआ यहूदियों और ईसाइयों को? क्या आज यहूदी और ईसाई आपस में दुश्मन हैं? यहूदी इस दर्द को आज भी याद करता है, रोज-ब-रोज खुद को ताकतवर बनाता जाता है, अपने धर्म पर अतिशय विश्वास रखते हुए अपने राष्ट्र को संसार के सम्मुख विकसित करता चला जाता है, और इन सबके बावजूद भी वह एक सेकुलर राष्ट्र है।
वहां हिब्रू के साथ अरबी भी राजकीय भाषा है। देश में रहने वाले ईसाई, अरबी और अन्य मुसलमान भी युहूदियों की भांति ही, एक रत्ती भी कम नहीं, समान नागरिक हैं।
देश में रहने वाले सभी यहूदियों, अरबियों और ईसाइयों को समान अधिकार प्राप्त हैं।
भारत में चीजें लगातार दबाई जाती हैं।
अंगार सुलगता रहता है, उसपर राख और पत्तियां और मिट्टी डालकर कहा जाता है कि इधर क्या ध्यान देते हो, आगे बढ़ो।
देश में पचास समस्याएं हैं।
बीती बातों को याद करके कोई लाभ नहीं। पर अंगार तो सुलग ही रहा है।
आज नहीं तो कल, इस जगह नहीं तो उस जगह, लपटें तो दिखेंगी ही।
किसी न किसी को तकलीफ होगी, कोई न कोई जलेगा, कपटनीति होती रहेगी, रंजिशें बनी रहेंगी।
एक बार, वन्स एंड फ़ॉर ऑल, इन सभी ऊपरी पैबन्दों को हटा ही देना उचित है।
देश के सभी नागरिकों को पता चले कि आखिर क्या हुआ था, कैसे हुआ था, क्यों हुआ था, क्या हासिल था इन सबका।
आपको लगता है कि इनसे नागरिक भड़क जाएंगे, दंगे होंगे, लोग मरेंगे। पर क्या अब तक दंगे और मौत नहीं हो रहे थे देश में।
भागलपुर से लेकर गुजरात और बरेली तक क्या हुआ था। ये शोभायात्राओं में पत्थरबाजी क्यों होती है।
कोई समझदार व्यक्ति अगर यह कहता है कि हिंदुओं के तीन प्रमुख देवस्थलों को मुस्लिम-मस्जिद अधिग्रहण से मुक्ति मिल जाये, इतना हिंदुओं के लिए पर्याप्त है, तो वह बड़ा ही नासमझ व्यक्ति है।
हिन्दू कोई अब्राहमिक मत नहीं है जिसमें एक व्यक्ति, एक देव, एक स्थान प्रमुख हो।
किसी का भगवान राम है तो वह अयोध्या से सन्तुष्ट हो जाएगा, पर किसी के मन में राम और कृष्ण और गणेश और मुरुगन और दैत्रा बाबा और नवग्रह भी समान स्थान रखते हैं।
किसी कट्टरपंथी बादशाह ने अयोध्या मन्दिर तोड़ मस्जिद बना लिया, उसे वापस मन्दिर बनाना सही है, तो सम्भल या जौनपुर या कांची या बेल्लूर या दिल्ली में किसी कट्टरपंथी बादशाह या निजाम द्वारा मन्दिर तोड़ मस्जिद को वापस मन्दिर के रूप में देखने की तमन्ना कैसे गलत हो सकती है?
कोई यह सोच भी कैसे सकता है कि मेरे देव/भगवान राम का मंदिर मिल गया तो बाकी सारे हिन्दू अपने देव/भगवान के मंदिरों की प्राप्ति के लिये कोई संघर्ष न करें, बल्कि इसपर बात ही न करें?
उत्तराखंड में कुछ महीनों पहले मजारों को लेकर शंकाएं व्यक्त की जा रही थी।
यहाँ की सरकार ने सभी मजारों का निरीक्षण-परीक्षण किया और बिना किसी समस्या के सभी नकली मजारें, कोई 80% मजारें हट गई।
इससे क्या किसी समुदाय को नुकसान हुआ? बल्कि फायदा ही हुआ कि वे ठगे जाने से बचे।
क्या कोई दंगा-फसाद हुआ नहीं, कुछ नहीं हुआ।
एक-एक कर, कभी यहाँ तो कभी वहाँ जब ऐसे मस्जिदों पर यह शंका व्यक्त होगी और सर्वे वगैरह की बात होगी तो ऐसे ही छिटपुट बवाल मचेगा।
होना तो यह चाहिए, कम से कम मेरा मानना तो यह है कि, एक बार में ही देश भर में जितने भी शंकाग्रस्त स्थल हैं, सबका डाटा बने और उन सबका सर्वे हो जाये।
नागरिकों को, क्या हिन्दू क्या मुस्लिम, सबको पता चले कि जिस जगह पर वे इतने सालों से माथा टेक रहे हैं वो आखिर है किसकी।
रिसते हुए फोड़े पर पट्टी लगाते जाने से बेहतर है कि एक बार में ही सारा मवाद निकाल दिया जाए।
इससे अंततः शरीर को लाभ ही होता है।

