प्रतापगढ़ में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। आरोप है कि मोहम्मद सगीर नामक युवक ने एक हिंदू युवती से दुष्कर्म किया और अब उस पर ज़बरन धर्म परिवर्तन का दबाव डाल रहा है। परिजनों का कहना है कि उन्हें लगातार मारने-पीटने और ‘कसाईखाने जैसा अंजाम भुगतने’ की धमकियाँ दी जा रही हैं। हालात इतने बिगड़े कि पीड़िता का परिवार अपने घर-ज़मीन को बेचकर सुरक्षित जगह पलायन करने की सोच रहा है।
पर सवाल यह है कि आख़िर इस कठिन समय में हिन्दू समाज के बड़े-बड़े संगठन कहाँ हैं?
जिन्हें मंचों पर ‘धर्म रक्षा’ और ‘बेटियों की सुरक्षा’ पर ज़ोर से भाषण देते सुना जाता है, वे प्रतापगढ़ की इस घटना पर खामोश क्यों हैं?
क्या कारण है कि एक असहाय परिवार अकेले अपनी सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है?
क्या प्रतापगढ़ जैसे इलाके में कोई “सनातनी शेर” बाक़ी नहीं बचा, जो इस परिवार को ढाल बनकर खड़ा हो सके?
समाज में बेचैनी
लोगों के बीच चर्चा यही है—नेताओं और संगठनों की गूंज केवल चुनावों और रैलियों तक सीमित क्यों है? जब ज़मीनी स्तर पर किसी बेटी और उसके परिवार पर संकट आता है, तब उनके लिए मददगार हाथ क्यों पीछे हट जाते हैं?
यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है और समाज में निराशा को गहरा करती है।


