मित्रों, इस समय पुरा देश पहलगाम हमले के बाद शोक में है। परंतु केन्द्र सरकार की कई जिम्म्दारियां हैं, वह कई मोर्चे पर संग्राम कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में जिस तरीके से वक्फ संशोधन अधिनियम के मामले में केंद्र सरकार से एक हफ्ते के अंदर जवाब मांगा था, वह जवाब भी सरकार को इसी मुश्किल घड़ी के बीच देना था।
अब आखिरकार केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि वक्फ संशोधन कानून को लेकर जो भी सवाल उठाए थे, उसका एक एक कर प्वाइंट बाई प्वाइंट जवाब दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट का सवाल था कि इतनी पुरानी इमारतें वक्फ के अधीन हैं, तो सभी का कागज कहाँ से दिखाए जाएंगे…? बहुत सारे तो मुगलकाल के भी इमारत होंगे…?
इसके जवाब में केंद्र सरकार ने इस पर कहा कि पिछले 100 साल में उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को केवल पंजीकरण के द्वारा ही मान्यता दी जाती है, 100 साल से यही नियम चलता आ रहा है। उस पंजीकरण के तो कागज होंगे…?
सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार ने अपने जवाब में बताया है कि वक्फ कानून में बदलाव क्यों जरूरी था। सरकार ने बताया है कि 1923 से वक्फ बाई यूजर प्रावधान के तहत रजिस्ट्रेशन जरूरी होने के बावजूद इसका गलत इस्तेमाल कर निजी और सरकारी संपत्तियों पर वक्फ घोषित किया जाता रहा है, जिसे रोकना जरूरी था। केंद्र सरकार ने कहा कि वक्फ बाई यूजर की व्यवस्था खत्म होने से मुस्लिम समुदाय के वक्फ करने का अधिकार नहीं छीना गया है बल्कि उसके दुरुपयोग पर लगाम लगाई गई है।
सरकार ने ये भी कहा है कि इस कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता अदालत को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने ये भी कहा है कि ये कानून वैध है और विधायी शक्ति का इस्तेमाल करके इसे बनाया गया है। सरकार ने कहा है कि वक्फ बाय यूजर को हटाने से उन वक्फ संपत्तियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा जो पहले से रजिस्टर्ड हैं। ये भ्रामक प्रचार है कि इससे ऐसी ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियों पर असर पड़ेगा जिनके पास वैध कागज नहीं हैं। केंद्र ने ये भी कहा कि विधायिका द्वारा की गई विधायी व्यवस्था को बदलना अस्वीकार्य है।
केंद्र सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि, परिषद में गैर-मुस्लिमों की अधिकतम संख्या कुल 22 में से 4 होंगे, और बोर्डों में कुल 11 में से 3 हो सकती है, वह भी अगर सभी पदाधिकारी गैर-मुस्लिम हो। केन्द्र सरकार ने हिन्दू धार्मिक न्यासों से संबंधित निकायों और वक्फ बोर्डों के बीच अंतर को रेखांकित किया है, और कहा है कि वक्फ का दायरा व्यापक है, और इसके तहत कई बार गैर-मुस्लिमों की संपत्तियां भी आती हैं, इसलिए बोर्डों में गैर मुस्लिमों की उपस्थिति संवैधानिक संतुलन को बनाए रखती है। केन्द्र सरकार ने कहा कि कुछ चौंकाने वाले उदाहरण सामने आए हैं जिनमें वक्फ बोर्डों ने बिना दस्तावेज या सर्वेक्षण के सरकारी भवनों, स्कूलों, और यहां तक कि पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित धरोहरों पर भी वक़्फ़ का दावा कर दिया है।
फिलहाल अब 5 मई को सुप्रीम कोर्ट इस पर अगली सुनवाई करेगी, केंद्र सरकार के जवाब पर सुप्रीम कोर्ट का रुख क्या हो सकता है, यह तो आने वाला समय ही बता सकता है। मगर फिर भी मोदी सरकार ने खुलकर सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब रखा है और सुप्रीम कोर्ट को भी संविधान के दायरे में रहकर काम करने को कहा है, ताकि कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच असंतोष न बढ़े।

