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अभी दो दिन पूर्व आतंकियों ने पहलगाम में पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलियां बरसा कर 20 से ज्यादा निर्दोष लोगों की हत्या कर दी।
यह खबर दिल दहलाने वाली है लेकिन यह मोदी विरोधियों के दिलों में ख़ुशी भर देगी। विपक्ष को क्या कहें, अभी सुशील पंडित कह रहा था कि कश्मीर में सामान्य हालात का आप ढोंग करते हैं।
इसको शर्म आनी चाहिए ऐसी भाषा प्रयोग करते हुए। अगर हालात कुछ भी ठीक नहीं हुए होते तो 18 अप्रैल को 38 साल बाद कश्मीर में बॉलीवुड की फिल्म "ग्राउंड ज़ीरो" का प्रीमियम नहीं हो सकता था।
सच्चाई यह है कि राहुल गांधी की तरह सुशील पंडित को भी मोदी से एलर्जी है। यह चाहता क्या है इसे खुद भी नहीं पता, बकवास करता है बस। लेकिन किसी बात का कोई समाधान इसके पास नहीं है। हालात में कुछ बदलाव न होता तो राहुल गांधी अपनी बहन के साथ कश्मीर में मौज-मस्ती की छुट्टियां बिताने नहीं जाता।
बस यही लक्ष्य है पंडित और विपक्ष का कि आतंकियों से हमले हो और सरकार को बदनाम किया जा सके कि कश्मीर में कोई हालात सामान्य नहीं हैं। पाकिस्तान तो खुश होगा क्योंकि उसके लोग हमारे लोगों के साथ मिलकर नरसंहार करने में सफल हुए।
यहाँ एक और समस्या है कि अगर पाकिस्तान की हमले में कड़ियां देखकर सेना कार्यवाही करेगी तो विपक्ष उसके सबूत मांगने खड़ा हो जाएगा। सुशील पंडित अजीब तरह का दोगला व्यक्ति है जो कभी 370 न हटाने के लिए सरकार को कोसता था लेकिन 370 हटने के बाद भी सरकार को निशाने पर रखता है।
एक भी आतंकी हमला होना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कश्मीर में कोई सुधार हुआ ही नहीं है।
ढोल तो सुशील पंडित और विपक्ष पीट रहा है जिनका मकसद केवल और केवल मोदी और उनकी सरकार को बदनाम करना है। और यह घटिया राजनीति अपनाकर ही ये लोग खुश हो लेते हैं और ये लोग पाकिस्तान का साथ देते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने सऊदी अरब से अमित शाह से बात करके उन्हें तत्काल वहां जाने को कहा है और हर संभव कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। अमित शाह श्रीनगर पहुंच भी गए हैं। कश्मीर के लोगों को कितनी सुविधाएं दी गई लेकिन फिर भी उनमें ही कुछ लोग है जो आतंकियों को शरण देते हैं, वरना ऐसा नहीं हो सकता कि आतंकी सीधे पाकिस्तान से आए और घटना को अंजाम दे सकें।
वो छुपे होते हैं कश्मीरियों के ही घरों में सरकार ने आतंकियों की मदद करने वालों पर भी पिछले दिनों कार्रवाई की हैं और आगे भी होगी।
यह तो निश्चित है कि आज का हमला करने वाले ढूंढ कर साफ़ कर दिए जाएंगे लेकिन विपक्ष इस पर राजनीतिक रोटियां सेकने का काम न करें।
कांग्रेस जब सत्ता में थी तो वह आतंकियों को गले लगा कर रखती थी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनका स्वागत करते थे। कांग्रेस के समय में कितने नरसंहार हुए, उसे याद नहीं।
उधर फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती अपना पुराना राग अलापेंगे कि पाकिस्तान से बात करो वरना यह ऐसे ही चलता रहेगा। जब कांग्रेस पाकिस्तान से बात करती थी, तब भी ऐसे ही चलता था और इसलिए पाकिस्तान से बात करने या न करने से कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला।
पहलगाम की घटना से मन बहुत दुःखी हुआ और ज्यादा कुछ लिखने का मन नहीं है।
सभी आतंकियों के हमले में मारे गए लोगों को मेरी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और उनके परिजनों को दुःखद पीड़ा सहने की शक्ति दे।
