एक बार पोस्ट को ध्यान से पढ़ें और विचार भी करें। 1 लाख में 99999 शांतिदूत गाय खाते हैं और एक नहीं खाता है। तो क्या तुम्हारी गौमाता बच जायेगी…?

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1 लाख में 99999 मोमिन दंगे के समय तुम्हारे ऊपर काफ़िर कह कर टूट पड़ता है और एक अच्छा वाला शांतिदूत जो तुमने माइक्रोस्कोप से खोजा था वो आकर उनको रोके तो क्या वो रुक जाएंगे…?

1 लाख में 99999 पाकिस्तान के लिए, अरब के लिए, ISIS के लिए जयकारे लगाए और एक मोमिन देशभक्त हो! शहीद होने को भी तैयार हो! तो क्या 99999 को पाकिस्तान की मदद करने से रोक पाएंगे…?

1 लाख में कितने ओवैसी हैं और कितने कलाम हैं…? चलो यही बताओ कलाम जी के रहते कितने दंगो को कलाम जी ने रुकवा लिया…?

और वो एक भी यह जताने के लिए हैं कि हममे से हर एक ऐसा नही है। चन्द लोगों की खातिर हमारी पूरी कौम को बदनाम नहीं किया जाये। अंदरूनी वो भी वैसा ही है। गुरू साहिवान के वचन और कुर्बानी हमेशा याद रखनी होगी।

दरअसल जो हिन्दू ऐसे पोस्ट डालते हैं वो बहुत ही कायर दब्बू हैं, जो सत्य से जी चुराते हैं। उनको लगता है कि बस किसी तरह ये बला टल जाए वरना मैं मारा जाऊंगा।

किसी बात के मूल में जाओ, जड़ में जाओ, दुनिया के हर एक शांतिदूत के लिए एक ही पवित्र किताब है 'कुरआन' उसमे साफ शब्दों में लिखा है कि "गैर मोमिन यानी हिन्दू को मारना, खत्म कर देना ही अल्लाह का काम है। और हर एक शांतिदूत को इसको मानना ही है 100% चाहे वो कैसा भी मोमिन हो" तो बात तो यहीं पर खत्म हो गई! इसके बाद बचा क्या…? फिर कौन सी अच्छाई और कौन सी मुहब्बत…?

आप लोगों के ऐसे बेवकूफी भरे पोस्ट से सेक्युलर और अज्ञानी हिन्दू असावधान होते हैं और उस 'एक' की आड़ में बाकी जिहादी आपके अंदर घुसकर तुम्हें ही मिटाने का कार्य सफलतापूर्वक करते आ रहे हैं। वो एक अच्छा इंसान तो हमेशा से रहे होंगे। कश्मीर में, पाकिस्तान में, आसाम में, बंगाल में, फिर क्यों मिट गए तुम लोग…?

अगर इस पोस्ट ने आपको झकझोर दिया हो तो आत्मचिंतन करें।

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