अक्सर हम बिना जाने दूसरों की देखा-देखी अपने त्योहारों की एक-दूसरे को बधाई देने लगते हैं जिससे उस त्योहार का महत्व हमारे आने वाली पीढ़ियां नहीं जान पाती।
क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति…?
मकर संक्रांति जो हिंदू धर्म में अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। यह पर्व पौष मास में मनाया जाता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। असल में इस पर्व का महत्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश (संक्रांति) से जुड़ा है और यह पर्व सूर्य देवता को ही समर्पित है। वर्तमान काल में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पंद्रहवें दिन ही पड़ता है, इसे विज्ञान, अध्यात्म और कृषि से संबंधित कई पहलुओं के लिए मनाया जाता है। तो आइए संक्षिप्त में जानते हैं इस पर्व के बारे में।
क्या है इसका आध्यात्मिक इतिहास…?
पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान भास्कर यानी सूर्यदेव जो कि नौ ग्रहों के राजा हैं, अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर गए थे और क्योंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए यह दिन "मकर संक्रांति" के नाम से जाना जाता है। और इस दिन ही माँ गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपि मुनि के आश्रम से होती हुई सागर से जा मिली थीं।
मकर संक्रांति के पीछे क्या कहता है विज्ञान…?
विज्ञान के दृष्टिकोण से मकर संक्रांति का महत्व सूर्य की गति (सौर प्रणाली) और पृथ्वी के अक्षीय झुकाव से संबंधित है। मकर संक्रांति के समय सूर्य मकर राशि (Capricorn) में प्रवेश करता है, जो लगभग 14 जनवरी के आसपास होता है।
यह दिन सौर मंडल की गति और पृथ्वी की ग्रहपथ से जुड़ा हुआ है। जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब सूर्य और पृथ्वी के बीच स्थिति बदल जाती है।
ये परिवर्तन पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध (northern hemisphere) में दिन के बढ़ने और तापमान में परिवर्तन का कारण बनता है।
इसके बाद से दिन धीरे-धीरे लंबा होता है और रातें छोटी होने लगती हैं। और यह सर्दी के मौसम के समाप्त होने की शुरुआत और गर्मी के मौसम के आने की ओर बढ़ने का संकेत होता है।
जिसकी शुरुआत 25 दिसंबर से होती है। लेकिन मकर संक्रांति से ये क्रम बदल जाता है।
माना जाता है कि मकर संक्रांति से ठंड कम होने की शुरुआत हो जाती है। अब आप ही बताओ ज्यादा महत्वपूर्ण 'मकर सक्रांति' है या 'क्रिसमस' का दिन।
आशा है कि आप सभी अपने बच्चों को इसकी जानकारी अवश्य देंगे।

