क्यों 12 साल बाद लगता है महाकुंभ…? कैसे तय होती है इसकी तिथि! कृपया अंत तक अवश्य पढ़े

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महाकुंभ मेले का सनातन धर्म में बहुत अधिक महत्व है।


    इस बार महाकुंभ मेले का आयोजन 13 जनवरी पौष पूर्णिमा से शुरू होगा जो 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर शाही स्नान, 29 जनवरी को मौनी अमावस्या का शाही स्नान, 3 फरवरी को वसंत पंचमी का आखिरी शाही स्नान होगा। 


    इस दौरान 4 फरवरी को अचला सप्तमी, 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर आखिरी स्नान का पर्व होगा; यानी महाकुंभ पूरे 45 दिनों तक चलेगा, इसमें तीन शाही स्नान 21 दिनों में पूरे होंगे।


    इस वर्ष यह महाकुंभ मेला उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहा है। तथा यह दुनियां के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में से एक है जो 12 सालों में एक बार आयोजित किया जाता है तो चलिए इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें जानते हैं।


    महाकुंभ मेले का सनातन धर्म में बड़ा धार्मिक महत्व है, यह मेला दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में से एक है। इस महाकुंभ में लोग दूर-दूर से भाग लेने के लिए आते हैं। बता दें, महाकुंभ मेला 12 सालों में एक बार आयोजित किया जाता है। इस दौरान करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम तट पर स्नान करने के लिए आते हैं।


    कहा जाता है कि इसमें एक बार स्नान करने से भक्तों के सभी पापों का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।


    प्रयागराज के साथ इन स्थानों में लगता है महाकुंभ


    प्रयागराज का इतिहास प्राचीन काल से चला आ रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से है। कहते हैं कि देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। तब जाकर अमृत का कलश प्राप्त हुआ था।


    ऐसा माना जाता है कि उस अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार पवित्र स्थानों यानी प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरी थीं। यही वजह है कि सिर्फ़ इन्हीं दिव्य स्थानों में कुंभ मेला लगता है।


    यह भी है एक कारण शास्त्रों में प्रयागराज को तीर्थ राज या "तीर्थ स्थलों का राजा" भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि पहला यज्ञ ब्रह्मा जी द्वारा यहीं किया गया था। महाभारत समेत विभिन्न पुराणों में इसे धार्मिक प्रथाओं के लिए जाना जाने वाला एक पवित्र स्थल माना गया है। इसलिए 12 साल बाद लगता है महाकुंभ।


    ऐसा कहा जाता है कि देवताओं और असुरों के बीच अमृत पाने को लेकर लगभग 12 दिनों तक लड़ाई चली थी। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि देवताओं के बारह दिन मनुष्य के बारह सालों के समान होते हैं। यही वजह है कि 12 साल बाद महाकुंभ लगता है।


    ऐसे तय होती है महाकुंभ मेले की तिथियां


    इसके अलावा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, एक कारण यह भी है कि जब बृहस्पति ग्रह, वृषभ राशि में हों और इस दौरान सूर्य देव मकर राशि में आते हैं, तो कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में होता है।


    ऐसे ही जब गुरु बृहस्पति, कुंभ राशि में हों और उस दौरान सूर्य देव मेष राशि में गोचर करते हैं, तब कुंभ हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। इसके साथ ही जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में विराजमान हो तो महाकुंभ नासिक में आयोजित किया जाता है। वहीं, जब ग्रह बृहस्पति सिंह राशि में हो और सूर्य मेष राशि में हो, तो कुंभ का मेला उज्जैन में लगता है। इस तरह कुम्भ मेले की तिथि निर्धारित की जाती है।

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