नाम परिवर्तन : "शाही स्नान" से "अमृत स्नान" तक

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मेरा सवाल था, "जुम्मा के जुम्मा नहाने वालों के नाम पर 'स्नान' क्यों…?

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परिचय :

    कुम्भ मेले में साधु-संतों और अखाड़ों द्वारा किया जाने वाला शाही स्नान, जो कुम्भ के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है, हाल ही में इसका नाम बदलकर "अमृत स्नान" कर दिया गया है। यह नाम परिवर्तन शाही शब्द के साथ जुड़ी इस्लामिक विवाद या धर्म के प्रति संवेदनशीलता के कारण किया गया है, लेकिन इसका उद्देश्य सनातन परंपरा की मूल आध्यात्मिकता, पवित्रता और गौरव को और अधिक स्पष्ट रूप से व्यक्त करना भी है।

    दरअसल "अमृत स्नान" न केवल इस अनुष्ठान के पौराणिक महत्व को उजागर करता है, बल्कि यह इसे किसी भी अन्य संदर्भ से जोड़ने की भ्रांति को भी समाप्त करता है। पहले अमृत स्नान को शाही स्नान कहा जाता था, लेकिन इस बार इसे अमृत स्नान का नाम दिया गया। इसका कारण जूना अखाड़े के पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने समझाया है। उन्होंने कहा कि अमृत स्नान का अर्थ है वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश और मकर राशि में सूर्य और चंद्र का एक साथ आगमन। जब यह संयोग 12 साल बाद बनता है, तो इसे अमृत योग कहा जाता है। स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने आगे बताया कि मकर संक्रांति का यह स्नान वाकई अमृत जैसा फल देता है, जो जीवन में पुण्य और समृद्धि लाता है।

    ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


    शाही स्नान शब्द "रॉयल बाथ" से लिया गया है, जो 19वीं सदी की शुरुआत में इस्तेमाल किया गया था। इसका इस्तेमाल पहली बार 1801 में पेशवाओं के शासनकाल में किया गया था। यह नामकरण भारतीय संस्कृति पर मुगल प्रभाव को दर्शाता है क्योंकि "शाही" एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ शाही या राजसी होता है। इस शब्द का इस्तेमाल कुंभ मेले के पवित्र स्नान के दिनों के लिए किया जाता था, जहाँ भक्तों का मानना है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है। अमृत स्नान या "अमृत स्नान" प्राचीन संस्कृत से लिया गया है और हिंदू दर्शन में पानी से जुड़े दिव्य और शुद्ध करने वाले गुणों पर जोर देता है। "अमृत" शब्द अमरता और पवित्रता को दर्शाता है, जो पारंपरिक हिंदू मान्यताओं के साथ अधिक निकटता से जुड़ा हुआ है।

    "अमृत स्नान" नाम परिवर्तन का कारण


    (1) शाही शब्द को लेकर विवाद

    'शाही' शब्द पर यह आपत्ति उठाई गई कि यह शब्द इस्लामिक प्रभाव से प्रेरित है। भारतीय इतिहास में 'शाही' शब्द का उपयोग मुगलों और इस्लामिक शासन के दौरान व्यापक रूप से हुआ जैसे 'शाही दरबार', 'शाही फरमान' आदि। यह भी माना जाता है कि आततायियों ने उनके राज में कुंभ के आयोजन के लिए यह शर्त रखी थी और ज़बरदस्ती शाही नाम दिया था।

    (2) सनातन परंपरा की पवित्रता को उजागर करना

    'अमृत स्नान' नाम यह सुनिश्चित करता है कि यह आयोजन सनातन धर्म के आध्यात्मिक और पौराणिक मूल से जुड़ा है। इसका सीधा संबंध समुद्र मंथन से है, जहाँ अमृत की बूंदें गिरने की कथा पवित्रता और मोक्ष का प्रतीक है।

    (3) धार्मिक और सांस्कृतिक जागरूकता

    'अमृत स्नान' शब्द हिंदू धर्म की आध्यात्मिक ऊर्जा और जीवनदायिनी परंपरा को अधिक प्रभावी ढंग से व्यक्त करता है। यह धर्म और परंपरा के प्रति गर्व और पहचान को बढ़ावा देता है।

    अमृत स्नान का पौराणिक महत्व


    (1) समुद्र मंथन और अमृत कथा

    पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन में अमृत उत्पन्न हुआ। अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरीं…
    - (क) प्रयागराज (त्रिवेणी संगम)
    - (ख) हरिद्वार (गंगा तट)
    - (ग) उज्जैन (क्षिप्रा नदी)
    - (घ) नासिक (गोदावरी नदी)
    इन स्थानों पर अमृत स्नान से व्यक्ति को मोक्ष और आत्मा की शुद्धि प्राप्त होती है।

    (2) साधु-संतों का नेतृत्व

    'अमृत स्नान' साधु-संतों और अखाड़ों की तपस्या और धर्मरक्षा के सम्मान का प्रतीक है। यह पवित्र स्नान अमृत के आध्यात्मिक महत्व और धर्म के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

    (3) अमृत और मोक्ष का संबंध

    'अमृत' का अर्थ है अमरत्व और शाश्वत ऊर्जा। इस स्नान को मोक्ष प्राप्ति का माध्यम माना गया है।

    नाम परिवर्तन का महत्व :- "शाही से अमृत"


    (1) सनातन धर्म के मूल से जुड़ाव

    'अमृत स्नान' नाम सनातन परंपरा के पौराणिक संदर्भ और आध्यात्मिक मूल को सटीक रूप से व्यक्त करता है। यह नाम उन विवादों को समाप्त करता है, जो 'शाही' शब्द को इस्लामिक प्रभाव से जोड़ते थे।

    (2) आध्यात्मिकता का प्रतीक

    'अमृत स्नान' सीधे पवित्रता, शुद्धता और मोक्ष का प्रतीक है। यह नाम धर्म और समाज को एकजुट करता है, क्योंकि यह शब्द किसी भी सांस्कृतिक या धार्मिक संदर्भ से विवादित नहीं है।

    (3) सांस्कृतिक जागरूकता

    यह परिवर्तन भारत के युवा वर्ग और आधुनिक समाज को सनातन परंपरा की गहराई और महत्व को समझाने का एक अवसर है।

    अमृत स्नान का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व


    (1) आध्यात्मिक महत्व

    पापों का शमन- अमृत स्नान व्यक्ति के जीवन के पापों का शमन करता है और उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है।
    साधु-संतों की शक्ति- यह स्नान अखाड़ों और साधु-संतों की तपस्या और त्याग को मान्यता देता है।
    धर्म और समाज का संगम- अमृत स्नान समाज को धर्म की ओर प्रेरित करता है और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है।

    (2) वैज्ञानिक महत्व

    सामूहिक चेतना का निर्माण- करोड़ों लोगों के सामूहिक स्नान से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
    यह सामूहिक ध्यान और प्रार्थना के माध्यम से मानसिक शांति और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है।
    स्वास्थ्य लाभ- ठंडे पानी में स्नान से शरीर में डोपामाइन और ऑक्सिटोसिन जैसे हार्मोन सक्रिय होते हैं, जो खुशी और शांति प्रदान करते हैं।
    यह रक्तसंचार को बेहतर बनाता है और शरीर को ऊर्जा से भर देता है।

    सामाजिक और धार्मिक प्रभाव :


    1. सामाजिक समरसता

    अमृत स्नान सभी जातियों, वर्गों और समुदायों को जोड़ता है। यह व्यक्ति और समाज दोनों को धर्म और परंपरा की गहराई से जोड़ता है।

    2. धार्मिक नेतृत्व 

    यह आयोजन साधु-संतों और अखाड़ों की धर्मरक्षा और समाज सेवा में भूमिका को रेखांकित करता है।

    3. आधुनिक युग में प्रेरणा

    'अमृत स्नान' आधुनिक पीढ़ी को धर्म, संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा देता है।

    निष्कर्ष : अमृत स्नान सनातन धर्म की अमर परंपरा।


    'अमृत स्नान' केवल एक नाम परिवर्तन नहीं, बल्कि यह सनातन धर्म की पवित्रता और मौलिकता को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास है। यह आयोजन धर्म और समाज को जोड़ने का माध्यम है। अतः यह लेख अब 'शाही स्नान' से 'अमृत स्नान' नाम परिवर्तन के संदर्भ, कारण, और उसके महत्व को समाहित करता है।

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